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कविता

वही न मिलने का ग़म और वही गिला होगा

शीन काफ़ निज़ाम


वही न मिलने का ग़म और वही गिला होगा
मैं जानता हूँ मुझे उस ने क्या लिखा होगा

किवाड़ों पर लिखी अबज़द गवाही देती है
वो हफ़्तरंगी कहीं चाक ढूँढ़ता होगा

पुराने वक़्तों का है क़स्त्र जिंदगी मेरी
तुम्हारा नाम भी उस में कहीं लिखा होगा

चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले
कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा

गली के मोड़ से घर तक अँधेरा क्यूँ है 'निज़ाम'
चराग़ याद का उस ने बुझा दिया होगा

 


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